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सरहुल महोत्सव 2025: : प्रकृति उपासना में जुटेगा आदिवासी समाज

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Faizan Ashraf

Updated At: 27 Mar 2025 at 09:35 AM

Sarhul Festival on April 1: Grand Celebration of Nature Worship in Jharkhand and Chhattisgarh

रांची/रायपुर:

झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज में उल्लास और भक्ति का पर्व सरहुल इस वर्ष, 30 मार्च 2025, को धूमधाम से मनाया जाएगा। यह त्योहार सरना धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा पर्व है, जिसे प्रकृति पूजन और नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। झारखंड के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा जैसे आदिवासी बहुल जिलों में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

झारखंड और छत्तीसगढ़ में सरहुल की विशेष धूम

सरहुल पर्व झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इस दिन प्रकृति, खासतौर पर साल (शाल) वृक्ष की पूजा की जाती है। झारखंड के रांची, गुमला, खूंटी, लोहरदगा में तो इसकी विशेष धूम होती ही है, वहीं छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा और रायगढ़ में भी यह पर्व भव्य तरीके से मनाया जाता है। यहां के आदिवासी समाज में यह त्योहार सामूहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

पूजा-पद्धति और तैयारियां जोरों पर

सरहुल महोत्सव को लेकर गांवों और शहरों में तैयारियां तेज हो गई हैं। सरना स्थल की सफाई की जा रही है, घरों की सजावट हो रही है और पारंपरिक अनुष्ठान की तैयारियां की जा रही हैं।

इस दौरान गांव के पहान (पुजारी) उपवास रखते हैं और पूजा के दिन सुबह पवित्र जल से भरे घड़े को सरना स्थल पर चढ़ाया जाता है। मुर्गे की बलि दी जाती है और पूरे गांव की शांति, समृद्धि और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है।

छत्तीसगढ़ में भी जुलूस और सांस्कृतिक कार्यक्रम

झारखंड की तरह ही छत्तीसगढ़ के जशपुर और सरगुजा में भी सरहुल को लेकर भव्य जुलूस निकाले जाएंगे। पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ पुरुष और महिलाएं साल के फूलों को सिर पर सजाकर पारंपरिक नृत्य करेंगे।सरहुल न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आदिवासी समुदाय के सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस दिन आदिवासी समाज के लोग पारंपरिक गीत-संगीत, सामूहिक भोज और नृत्य के साथ प्रकृति के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।

राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन भी पर्व को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए विशेष तैयारियां कर रहे हैं।

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