Mallikarjun Kharge : मल्लिकार्जुन का 50 साल का सियासी सफर, ढाई दशक बाद ऐसे बने कांग्रेस के गैर-गांधी अध्यक्ष

admin
Updated At: 20 Oct 2022 at 02:00 PM
मल्लिकार्जुन खड़गे सोलिल्लादा सरदारा... यानी ‘ऐसा नेता जो कभी नहीं हारता। यही साबित किया है कांग्रेस अध्यक्ष पद पर विजयी रहे खरगे ने...। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की बागडोर संभालने वाले खरगे गरीब परिवार में जन्मे और बेहद मुफलिसी में दिन गुजारे। गांधी परिवार के बेहद वफादार वरिष्ठ नेता लगातार 50 सालों से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाते आ रहे हैं। खरगे कर्नाटक से कांग्रेस के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं।
24 साल बाद कांग्रेस के गैर-गांधी अध्यक्ष बने कर्नाटक के मुखर जमीनी नेता मापन्ना मल्लिकार्जुन खरगे (80) को गांधी परिवार का बेहद वफादार माना जाता है। अपने क्षेत्र में उन्हें ‘सोलिल्लादा सरदारा’ यानी ‘ऐसा नेता जो कभी नहीं हारता’ कहा जाता है। जो बहुत कुछ सही भी है, 1969 में शुरू हुए करीब 50 साल के राजनीतिक कॅरिअर में लगातार 9 बार विधायक और दो बार सांसद रहने के बाद 2019 के आम चुनाव में उन्हें पहली बार पराजय मिली था। एक बार फिर मौका मिला तो खरगे ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर उनसे सात गुना वोट लेकर जीत हासिल की।
खरगे कर्नाटक से कांग्रेस के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं। जगजीवन राम के बाद दलित समुदाय से आने वाले भी वे दूसरे अध्यक्ष हैं। उनकी राजनीतिक शुरुआत गुलबर्गा (आज कलबुर्गी) में यूनियन नेता के रूप में हुई और गुर्मित्कल विधानसभा सीट से लगातार 9 दफा विधायक बनने के साथ कॅरिअर ग्राफ आगे बढ़ता रहा। 1969 में वे कांग्रेस से जुड़े और शहर कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए। 2014 के आमचुनाव में भाजपा व नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद गुलबर्गा की लोकसभा सीट पर उन्होंने 74 हजार से ज्यादा मतों से जीत हासिल की। हालांकि 2019 में भाजपा के उमेश जाधव ने उन्हें 95 हजार से ज्यादा मतों से हराकर जीत का सिलसिला तोड़ा। जून 2020 में उन्हें कर्नाटक से राज्यसभा भेजा गया और नेता प्रतिपक्ष चुना गया। इसी पद से इस्तीफा देकर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा।
पर्याप्त अनुभव
2014 और 2019 में लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल का मुखिया होने पर भी उन्हें नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया जा सका, क्योंकि लोकसभा में पार्टी की सीटें 10 प्रतिशत से कम थी। इससे पहले खरगे ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व की यूपीए सरकार में श्रम व रोजगार, रेलवे, सामाजिक न्याय व सशक्तीकरण मंत्रालय संभाले। वहीं गृह राज्य कर्नाटक में एसएम कृष्णा सरकार में वे गृह मंत्री रहे और कन्नड़ सुपर स्टार राजकुमार के वीरप्पन द्वारा अपहरण, कावेरी जल विवाद जैसे मामलों को देखा।
खरगे को कई बार जब कर्नाटक के दलित सीएम प्रत्याशी के तौर पर लोगों ने प्रस्तुत किया तो वे सवाल उठाते, ‘आप बार-बार दलित क्यों कहते हैं? ऐसा मत कहिये, मैं खुद को कांग्रेस नेता कहता हूं।’ उन्हें कई बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने की पहली पसंद के तौर पर देखा गया, लेकिन यह पद उन्हें कभी मिला नहीं। 2004 में अपने मित्र धर्मसिंह और 2013 में सिद्धारमैया को मित्रता व पार्टी की एकता के नाते सीएम बनवाया, खुद पद का कोई लालच नहीं रखा।
कर्नाटक से दूसरे अध्यक्ष : 50 साल के राजनीतिक अनुभव वाले खरगे एस निजलिंगप्पा के बाद पार्टी के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जगजीवन राम के बाद वह दूसरे दलित नेता हैं जो पार्टी की कमान संभालेंगे
24 साल बाद कांग्रेस के गैर-गांधी अध्यक्ष बने कर्नाटक के मुखर जमीनी नेता मापन्ना मल्लिकार्जुन खरगे (80) को गांधी परिवार का बेहद वफादार माना जाता है। अपने क्षेत्र में उन्हें ‘सोलिल्लादा सरदारा’ यानी ‘ऐसा नेता जो कभी नहीं हारता’ कहा जाता है। जो बहुत कुछ सही भी है, 1969 में शुरू हुए करीब 50 साल के राजनीतिक कॅरिअर में लगातार 9 बार विधायक और दो बार सांसद रहने के बाद 2019 के आम चुनाव में उन्हें पहली बार पराजय मिली था। एक बार फिर मौका मिला तो खरगे ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर उनसे सात गुना वोट लेकर जीत हासिल की।
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खरगे कर्नाटक से कांग्रेस के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं। जगजीवन राम के बाद दलित समुदाय से आने वाले भी वे दूसरे अध्यक्ष हैं। उनकी राजनीतिक शुरुआत गुलबर्गा (आज कलबुर्गी) में यूनियन नेता के रूप में हुई और गुर्मित्कल विधानसभा सीट से लगातार 9 दफा विधायक बनने के साथ कॅरिअर ग्राफ आगे बढ़ता रहा। 1969 में वे कांग्रेस से जुड़े और शहर कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए। 2014 के आमचुनाव में भाजपा व नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद गुलबर्गा की लोकसभा सीट पर उन्होंने 74 हजार से ज्यादा मतों से जीत हासिल की। हालांकि 2019 में भाजपा के उमेश जाधव ने उन्हें 95 हजार से ज्यादा मतों से हराकर जीत का सिलसिला तोड़ा। जून 2020 में उन्हें कर्नाटक से राज्यसभा भेजा गया और नेता प्रतिपक्ष चुना गया। इसी पद से इस्तीफा देकर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा।
पर्याप्त अनुभव
2014 और 2019 में लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल का मुखिया होने पर भी उन्हें नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया जा सका, क्योंकि लोकसभा में पार्टी की सीटें 10 प्रतिशत से कम थी। इससे पहले खरगे ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व की यूपीए सरकार में श्रम व रोजगार, रेलवे, सामाजिक न्याय व सशक्तीकरण मंत्रालय संभाले। वहीं गृह राज्य कर्नाटक में एसएम कृष्णा सरकार में वे गृह मंत्री रहे और कन्नड़ सुपर स्टार राजकुमार के वीरप्पन द्वारा अपहरण, कावेरी जल विवाद जैसे मामलों को देखा।
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...पर मुख्यमंत्री नहीं बन सके
खरगे को कई बार जब कर्नाटक के दलित सीएम प्रत्याशी के तौर पर लोगों ने प्रस्तुत किया तो वे सवाल उठाते, ‘आप बार-बार दलित क्यों कहते हैं? ऐसा मत कहिये, मैं खुद को कांग्रेस नेता कहता हूं।’ उन्हें कई बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने की पहली पसंद के तौर पर देखा गया, लेकिन यह पद उन्हें कभी मिला नहीं। 2004 में अपने मित्र धर्मसिंह और 2013 में सिद्धारमैया को मित्रता व पार्टी की एकता के नाते सीएम बनवाया, खुद पद का कोई लालच नहीं रखा।
कर्नाटक से दूसरे अध्यक्ष : 50 साल के राजनीतिक अनुभव वाले खरगे एस निजलिंगप्पा के बाद पार्टी के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जगजीवन राम के बाद वह दूसरे दलित नेता हैं जो पार्टी की कमान संभालेंगे।
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निजाम की फौज ने मां को जलाया था जिंदा
1947 में देश आजादी का जश्न मना रहा था, लेकिन खरगे के गांव वरवट्टी में हैदराबाद के निजाम का शासन था। हैदराबाद का विलय बाकी था और उत्साहित भारतीयों ने तिरंगे लहराने शुरू कर दिए। तिरंगा फहराने पर निजाम की सेना व रजाकारों ने वरवट्टी में हमला कर दिया।
रजाकार यानी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन की बनाई इस्लामी कट्टरपंथियों की नागरिक सेना।
हमला होते ही 5 साल के खरगे को लेकर उनके पिता मापन्ना जंगल की ओर भागे, पर उनकी मां साईबववा पीछे छूट गई। रजाकारों ने उनकी मां को जिंदा जला दिया। इस क्रूर घटना के बावजूद मापन्ना ने हिम्मत नहीं हारी, अगले 3 महीने जंगल में गुजारे। किसी प्रकार नजदीकी निबुंर पहुंचे और रिश्तेदारों के पास परिवार को रखा। फिर गुलबर्गा आए और मजदूरी कर परिवार पाला।
1948 में निजाम के आत्मसमर्पण और रजाकारों की सेना भंग होने पर हालात सामान्य हुए तो मापन्ना ने कपड़ा मिल में नौकरी की। मेहनत-मजदूरी से जीवन को पटरी पर लाए। तय किया कि मल्लिकार्जुन कम उम्र में काम न करे, बल्कि पढ़े। नतीजतन, बेटा वकील बना।
मुफलिसी से शीर्ष तक
21 जुलाई, 1942 को बीदर जिले के वारावट्टी गांव के गरीब परिवार में जन्म।
गुलबर्गा से स्कूली शिक्षा। स्कूल में हेड बॉय चुने गए। एलएलबी। वकालत भी की।
श्रमिक यूनियनों के केस लड़कर लोकप्रिय हुए।
बौद्ध धर्मावलंबी। सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के अध्यक्ष। ट्रस्ट ने कलबुर्गी में बुद्ध विहार कॉम्प्लेक्स बनाया
दो बेटियां जयश्री व प्रियदर्शिनी और तीन बेटे मिलिंद, राहुल व प्रियांक हैं। प्रियांक विधायक हैं, कर्नाटक में मंत्री रहे हैं। मिलिंद डॉक्टर हैं।
पार्टी में बदलाव का दौर शुरू : थरूर
खरगे ने जैसे ही कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीता, उनके प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर ने हार स्वीकारते हुए कहा कि लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा ने पार्टी के सभी स्तरों पर जीवंतता पैदा कर दी है। बदलाव को लेकर एक स्वस्थ और रचनात्मक चर्चा शुरू हुई है, जो कि भविष्य में पार्टी के लिए बेहतर साबित होगी। थरूर ने दावा किया, कांग्रेस का पुनरुद्धार शुरू हो गया है। उन्होंने कहा, उनके और खरगे के मुकाबले से पार्टी और मजबूत हुई है।
थरूर ने कहा, नेहरू-गांधी परिवार का कांग्रेस पार्टी के सदस्यों के दिलों में विशेष स्थान है और हमेशा रहेगा। मेरा विश्वास है कि गांधी परिवार कांग्रेस का आधार स्तंभ है। हमेशा हमारी नैतिक अंतरात्मा और अंतिम मार्गदर्शक बना रहेगा। आंतरिक पार्टी लोकतंत्र के सच्चे उत्सव में कांग्रेस के 9,500 से अधिक प्रतिनिधियों ने पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव में वोट डाला है।
थरूर ने कहा, नए अध्यक्ष वरिष्ठ हैं, जिनके पास पर्याप्त अनुभव है। विश्वास है, उनके मार्गदर्शन में सामूहिक रूप से पार्टी को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। सोनिया गांधी के योगदान की सराहना करते हुए थरूर ने कहा कि पार्टी उनके लगभग 25 वर्षों के नेतृत्व के और हमारे सबसे अहम क्षणों के दौरान हमारी ताकत बने रहने के लिए ऋणी रहेगी।
थरूर की चुनाव टीम ने लगाए गड़बड़ी के आरोप, कहा- यूपी, पंजाब व तेलंगाना के वोट हों रद्द
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए शशि थरूर की प्रचार टीम ने यूपी, पंजाब और तेलंगाना के वोट रद्द करने की मांग की। प्रचार टीम ने पार्टी हाईकमान से शिकायत करते हुए एक पत्र लिखा। हालांकि इसके मीडिया में लीक होने से शीर्ष नेतृत्व काफी नाराज भी हुआ। कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने पार्टी मुख्यालय में हुई प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा, अगर कोई आपत्ति थी, इसकी शिकायत वाला पत्र मीडिया में लीक नहीं होना चाहिए था। नए अध्यक्ष का एलान करने के बाद मिस्त्री ने कहा, थरूर की टीम का पत्र मीडिया में लीक नहीं होना चाहिए था। थरूर की टीम को सीधे चुनाव प्राधिकरण के पास आकर अपनी बात कहनी चाहिए थी।
मिस्त्री ने पत्र में लगाए गए आरोपों को निराधार बताया। मिस्त्री को लिखे पत्र में थरूर के मुख्य चुनाव एजेंट सलमान सोज ने कहा, उत्तर प्रदेश में जो कुछ देखा गया है वह ‘आपके कार्यालय’ के अधिकार के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष और कांग्रेस कार्यसमिति के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के आदेशों की अवमानना के लिए एक खुली चुनौती है। ये तथ्य ‘हानिकारक’ हैं और उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रक्रिया विश्वसनीयता और अखंडता से रहित है। मतदान एजेंटों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद हमारी टीम परेशान करने वाले तथ्यों की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य है।
ये अनियमितताएं गिनाईं
उत्तर प्रदेश में थरूर की टीम ने जो अनियमितताएं गिनाईं उनमें मतपेटियों के लिए अनौपचारिक मुहरों का उपयोग, मतदान केंद्रों में अनौपचारिक व्यक्तियों की उपस्थिति, मतदान कदाचार, मतदान सारांश पत्र न होना, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के प्रभारी सचिवों की उपस्थिति शामिल है।
इस चुनाव को निष्पक्ष कैसे मानें
थरूर की टीम ने पत्र में लिखा, अगर जो कुछ यूपी में हुआ उसे उचित ठहराया जाता है तो कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष कैसे माना जा सकता है। हम मांग करते हैं कि उत्तर प्रदेश के सभी वोट अवैध माने जाएं।
थरूर की टीम ने कहा, उसे इस चुनाव में मतदाता धोखाधड़ी का संदेह है। आरोप लगाया कि ऐसे प्रतिनिधि थे जो मतदान के दिन लखनऊ क्षेत्र में मौजूद नहीं थे मगर उनके वोट डाले गए।
लोगों ने वोट नहीं डालने देने की भी शिकायत की थी कयोंकि कुछ लोगों ने उसने पहले ही उनके वोट डाल दिए।
सोज ने आरोप लगाया, जब हमारे एजेंटों ने मतदाता कदाचार की शिकायत की, तो दूसरे पक्ष के समर्थक मतदान केंद्र के अंदर आ गए और हंगामा किया और हमारे मतदान एजेंटों को धमकाना शुरू कर दिया।
पत्र लीक होने पर दी सफाई
मिस्त्री को लिखी चिट्ठी लीक होने के बाद सोज़ ने ट्वीट किया, हमारी यूपी टीम से मिली शिकायतों के बाद सीईए के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री को तुरंत लिखा गया। यह एक मानक प्रकिया है। सीईए ने निष्पक्ष जांच का आश्वासन भी दिया है। सोज के इस ट्वीट को साझा करते हुए थरूर ने ट्विटर पर लिखा, यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण को लिखा गया आंतरिक पत्र मीडिया में लीक कर दिया गया था। मुझे उम्मीद है सलमान सोज के इस स्पष्टीकरण से एक अनावश्यक विवाद समाप्त हो जाएगा। यह चुनाव कांग्रेस को मजबूत करने के लिए, बांटने के लिए नहीं था।
अध्यक्ष तय करेंगे, पार्टी कैसे आगे बढ़ेगी : राहुल
अदोनी (आंध्र प्रदेश)। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि अब नए अध्यक्ष तय करेंगे कि पार्टी कैसे आगे बढ़ेगी। राहुल ने कहा, खरगे और थरूर अनुभवी व समझदार नेता हैं। जो भी चुने जाते हैं, उन्हें मुझसे सलाह की जरूरत नहीं है। वे तय करेंगे कि क्या करना है। राहुल ने कहा, हम एकमात्र दल हैं, जहां चुनाव होते हैं।
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