आइये जानते है रायपुर लोकसभा सीट का इतिहास, यहाँ कभी कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन अब बन चुका है भाजपा का गढ़
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Updated At: 21 Mar 2024 at 10:46 PM
छत्तीसगढ़ में होली से पहले लोकसभा चुनाव का रंग चढ़ने लगा है. सभी दलों के नेता प्रचार में जोर-शोर से जुट गए हैं. वहीं आज हम रायपुर लोकसभा सीट के इतिहास के बारे में बताने जा रहे. इस सीट पर कभी कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था, लेकिन अब भाजपा का गढ़ बन चुका है.रायपुर लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो 1951 से अब तक 17 बार हुए चुनाव में आठ बार मतदाताओं ने कांग्रेस को चुना. कांग्रेस की लगातार जीत का मिथक पुरुषोत्तम कौशिक ने तोड़ा. इसके बाद फिर यह सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई. 1989 में भाजपा प्रत्याशी रमेश बैस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे केयूर भूषण को हराया. 1991 में कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल लोकसभा सदस्य चुने गए. 1996 में रमेश बैस ने विद्याचरण के बड़े भाई श्यामाचरण शुक्ल को हराया. इसके बाद से रायपुर सीट भाजपा का गढ़ बन गया है. बैस 1996, 1998, 1999,2004, 2009 और 2014 तक लगातार लोकसभा चुनाव जीते. अभी भाजपा के सुनील सोनी लोकसभा सदस्य हैं.
इस बार बृजमोहन अग्रवाल और विकास उपाध्याय के बीच मुकाबला
भाजपा ने रायपुर सीट पर आठ बार के विधायक रहे बृजमोहन अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया है. बृजमोहन अग्रवाल 1990 में पहली बार मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायक चुनकर आए. वे राज्य के सबसे युवा एमएलए थे. इसके बाद से 1993, 1998, 2003, 2008, 2013, 2018 और 2023 में वे विधायक चुने गए. वहीं कांग्रेस ने पूर्व विधायक विकास उपाध्याय को मैदान में उतारा है. उन्होंने तीन बार के मंत्री रह चुके राजेश मूणत को चुनाव में शिकस्त दी थी.
रायपुर लोकसभा सीट का जातिगत समीकरण
रायपुर लोकसभा क्षेत्र में 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें बलौदाबाजार, भाटापारा, धरसींवा, रायपुर नगर पश्चिम, रायपुर नगर उत्तर, रायपुर नगर दक्षिण, रायपुर ग्रामीण, अभनपुर और आरंग विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. कुर्मी, साहू और सतनामी समाज के मतदाता लोकसभा सदस्य चुनने में अहम भूमिका निभाते हैं. रायपुर उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में जातिगत समीकरण ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाते, क्योंकि इस विधानसभा क्षेत्र में सभी वर्ग के मतदाता शामिल हैं.