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अंशुमन झा बने टाइगर श्रॉफ की सस्ती कॉपी, समझिए श्वान प्रेमियों की फिल्म में कौन बना विलेन

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admin

Updated At: 12 Jan 2023 at 04:48 PM

देश में इन दिनों आवारा कुत्ते हर गली, मोहल्ले, सोसाइटी और शहर का ज्वलंत मुद्दा हैं। इनकी आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि हर दिन इनके हमलों को लेकर खबरें आती ही रहती हैं। स्थानीय एजेंसियों इसके बारे में बने कानूनों से बंधी हैं। अदालतें ज्यादा कुछ खुलकर इस पर कहती नहीं हैं। पशु प्रेमियों और कुत्तों के हमलों के शिकार लोगों के बीच चलते रहने वाले विवादों के अलावा इन श्वान प्रेमियों के अपने पालतू को दूसरों के घरों के सामने नित्यकर्म करा देने के विवाद भी चलते रहते हैं। वैसे आम तौर पर कुत्तों को इंसान का सबसे वफादार जानवर माना जाता है। फिल्म 'लकड़बग्घा' एक ऐसे ही श्वानप्रेमी अर्जुन बख्शी की कहानी है। उसका मानना है कि बेजुबान जानवरों की रक्षा करनी चाहिए। एक दिन जब उसका एक पालतू कुत्ता गायब हो जाता है, तो उसकी खोज में वह कुत्तों की तस्करी करने वाले गिरोह तक पहुंच जाता है।अब सवाल यह उठता है कि जब फिल्म में कुत्तों के बारे में बताया गया है तो फिल्म का नाम 'लकड़बग्घा' क्यों है? इसके पीछे भी एक ट्विस्ट है। दरअसल, अर्जुन बख्शी जब कुत्तों की तस्करी करने वाले गिरोह के एक एक सदस्यों को मारता है तभी उसकी मुलाकात एक 'लकड़बग्घा' से होती है जो तस्करी करने वाले गिरोह के लड़कों पर हमला करता है। अर्जुन बख्शी को डर है कि कहीं 'लकड़बग्घा उस पर भी हमला न कर दे। समझाया यहां ये गया है कि जानवर तभी किसी पर हमला करते हैं, जब उनको सामने वाले से खतरा महसूस होता है। अर्जुन उसको लेकर अपने घर आता है और घरेलू कुत्तों की तरह उसे भी पालता है।फिल्म 'लकड़बग्घा' की कहानी का नायक अर्जुन बख्शी दिन में छोटे बच्चों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देता है और कूरियर बॉय का काम भी करता है। रात को कोलकाता की गलियों में घूमने वाले आवारा कुत्तों की रक्षा करता है। उनके खाने-पीने के प्रबंधन से लेकर उनके प्रति होने वाली हिंसा को रोकने का काम करता है। इसमें कुत्ते के प्रति संवेदनाओं के साथ उनके खिलाफ हिंसा करने वालों के प्रति जबरदस्त एक्शन भी देखने को मिलता है। इस कहानी पर फिल्म बनाने का आइडिया खुद अंशुमन झा का ही था जो फिल्म में अर्जुन बक्शी का किरदार निभा रहे हैं। फिल्म के निर्माता भी वह खुद ही ही है। 'लकड़बग्घा' से पहले अपने वह अपने प्रोडक्शन हाउस 'फर्स्ट रे फिल्म्स' के बैनर तले फिल्म 'मोना डार्लिंग' का निर्माण भी कर चुके हैं। चूंकि अंशुमन झा फिल्म के निर्माता खुद ही हैं तो पूरी फिल्म का फोकस उन्हीं पर है और यहीं फिल्म मात खा जाती है। खुद को जैकी चैन और ब्रूस ली के बीच कहीं फिट करने की कोशिश में अंशुमन देखा जाए तो टाइगर श्रॉफ की सस्ती कॉपी बनकर रह जाते हैं।फिल्म 'लकड़बग्घा' से छोटे पर्दे की चर्चित अभिनेत्री ऋद्धि डोगरा भी सिनेमा में शुरुआत कर रही हैं। यहां वह सीबीआई अफसर बनी हैं। ये अफसर इस बात का पता लगाने में लगी है कि शहर में जो मौते हो रहीं है, इसके पीछे हाथ किसका है? कहानी का असली लोचा ये है कि यहां उनकी प्रेम कहानी भी है। और, ये प्रेम कहानी ही फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है। जानवरों पर आधारित पारिवारिक फिल्म में तो ऐसा होना समझ आता है लेकिन एक एक्शन फिल्म में अब दर्शकों को इश्क, मोहब्बत और बाकी फॉर्मूलों से मोह बचा नहीं है। कहानी की लय टूटती है और दर्शक बगल की सीट पर बैठे लोगों को देखकर ये समझने की कोशिश करने लगता है कि और कौन कौन लोग हैं जो इस फिल्म पर अपने समय का निवेश करने आए हैं।निर्माता, निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' के बाद मिलिंद सोमन आठ साल के बाद इस फिल्म से वापसी कर रहे हैं। माना जा रहा था कि फिल्म में वह सरप्राइज पैकेज में होंगे, लेकिन उनके हिस्से में सिर्फ महज कुछ ही सीन आए। आठ साल के बाद ऐसी फिल्म करने के पीछे उनकी क्या सोच रही होगी, यह तो मिलिंद सोमन ही बता सकते हैं। शायद इसीलिए मिलिंद सोमन फिल्म के ट्रेलर लांच के दौरान नहीं आए। फिल्म का विचार अच्छा है। लेकिन, कहानी और पटकथा कमजोर हो तो बाकी चीजें अपने आप ही कमजोर हो जाती हैं। फिल्म के गाने भी बेहद नीरस हैं। फिल्म इंटरवल के बाद बहुत बोर करती है और फिल्म के संपादन की ये बड़ी चूक है। जीन मार्क सेल्वा की सिनेमैटोग्राफी में जरूर कुछ जान है, फिल्म में अगर किसी की तारीफ की जा सकती है, तो वह ही हैं।फिल्म के निर्देशक विक्टर मुखर्जी भी अपनी जिम्मेदारी निभाने से चूक गए। कहने को तो फिल्म एक भावनात्मक एक्शन फिल्म है। एक्शन के बारे में आपको जानकारी मिल ही गई, रही बात कुत्ते के प्रति भावनाओं की तो वह अंशुमन के चेहरे पर रत्ती भर भी नजर नहीं आतीं। फिल्म 'लकड़बग्घा' लेखन, निर्देशन, संगीत, संपादन के अलावा अभिनय के विभाग में भी फेल हुई है। परेश पाहूजा के अलावा किसी भी कलाकार ने अपना प्रभाव नहीं छोडा हैं। अंशुमन झा इससे पहले 'लव सेक्स धोखा' और 'मस्तराम' जैसे सीरीज में दिखे और ये फिल्म देखने के बाद लगता है कि बड़े परदे की हीरोगिरी सीखने के लिए अभी उन्हें वक्त लगेगा।

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